नमस्कार दोस्तों आज के लेख में हम लोग एक ऐसे विज्ञान से आपका परिचय करायेगे जो की उन तमाम गतिविधियों की जाँच करता है जो की असामान्य है। जी हाँ हम बात कर रहे है परा मनोविज्ञान। परा मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसके अंतर्गत वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हुए इस बात की जाँच-परख करने का प्रयत्न किया है, क्या मृत्यु के बाद भी मनोवैज्ञानिक क्षमताओं का का अस्तित्व होता है?
इस विज्ञान का सम्बध मनुष्य की उन ऊर्जा और शक्तियों से है जिनकी व्याख्या सामान्य मनोविज्ञान के दायरे से बाहर हैं। दोस्तों ज़ब भी इस विज्ञान की बात की जाती है तो लोगो के मन मे एक अजीब छवि बन जाती है। परा मनोविज्ञान मतलब भूत प्रेत से संबधित विज्ञान। जबकि ऐसा नहीं है। घोस्ट हटिंग इस विज्ञान का एक भाग है। जो साधारण शब्दो में हम कह सकते है की ये विज्ञान कोई जादू टोने, तंत्र मंत्र और भूत प्रेत वाला विज्ञान नहीं है।
परा मनोविज्ञान का इतिहास बहुत पुराना है, परन्तु वैज्ञानिक स्तर पर इसका आरम्भ वर्ष 1882 मे माना जाता है। जिस वर्ष लंदन में परामनसिकीय अनुसंधान के लिए “सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च” (एस. पी. आर.) की स्थापना हुई। हालांकि इससे पहले भी
कैंब्रिजमें “घोस्टeevam सोसाइटी”, तथा ऑक्सफोर्ड में “फैस्मेटोलाजिकल सोसाइटी” जैसे संस्थान की शुरुवात हो चुकी थी। परन्तु वैज्ञानिक पद्धति का आरम्भ SPR की शुरुवात के बाद ही हुआ। संस्थान का मुख्य उद्देश्य रहस्यमय प्रतीत होनेवाली सभी घटनाओं को वैज्ञानिक ढंग से समझना, और विचारसंक्रमण, दूरज्ञान, पूर्वाभाaaस, प्रेतछाया, सम्मोहन आदि की वैज्ञानिक तथा निष्पक्ष जाँच करना था। इस क्षेत्र में अध्ययन की गई घटनाओं में क्लैरवॉयन्स (भविष्य की भविष्यवाणी करने की क्षमता), टेलीकिनेसिस (किसी के दिमाग से वस्तुओं को स्थानांतरित करने की क्षमता), टेलीपैथी (दिमाग से दिमाग का संचार), और भूत दर्शन शामिल हैं। शरीर से बाहर के अनुभव और अतीन्द्रिय बोध (ईएसपी) के अन्य रूप भी परामनोविज्ञान की छत्रछाया में आते हैं।
वैभव भारद्वाज
परा विज्ञान, अध्यात्मिक विज्ञान, सम्मोहन चिकित्सक, एवं थेरेपिस्ट